गिरफ्तारी क्या है?
गिरफ्तारी व गिरफ्तारी के नियम
संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों में दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार को भी सम्मिलित किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 21 में व्यक्ति की दैहिक स्वतन्त्रता की बात कही गयी है और यह भी बताया गया है कि प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि वह देश में कहीं भी जहाँ कानूनी अवरोध न हो आने व जाने के लिए स्वतन्त्र है। परन्तु यदि किसी व्यक्ति पर कोई अभियोग लगता है तो कुछ युक्तियुक्त कारणों व परिस्थितियों की वजह से कानूनी तौर पर उसे गिरफ्तार करना आवश्यक हो जाता है। जिसके कुछ नियम होते हैं, जो कि देश के प्रत्येक नागरिक को जानने चाहिए। इन नियमों को जानने से पहले गिरफ्तारी क्या है, यह जानना आवश्यक है।
गिरफ्तारी क्या है ?
गिरफ्तारी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति को युक्तियुक्त कारणों के आधार पर कानूनी रूप से उसकी स्वतन्त्रता से वंचित कर दिया जाता है। आपराधिक विधि में पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिए आरोपी जिसने अपराध किया है उसकी गिरफ्तारी आवश्यक होती है।
इसके लिए अपराधी या आरोपी को गिरफ्तार करने के कुछ नियम हैं जिनके बारे में दण्ड प्रक्रिया संहिता - 1973 की धारा 41 से धारा 60 तक में विस्तार से बताया गया है।
गिरफ्तारी कौन और कैसे करेगा
1. पुलिस द्वारा बिना वॉरण्ट के गिरफ्तारी
दण्ड प्रक्रिया संहिता - 1973 की धारा 41 में बताया गया है कि कोई पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना औऱ वॉरण्ट के बिना किसी भी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है जिसने पुलिस के सामने कोई संज्ञेय अपराध किया हो या देश के किसी कानून का उल्लंघन किया हो या करने वाला हो अथवा करने की तैयारी में हो। इस प्रकार से गिरफ्तारी के लिए कुछ नियम और अधिकार दण्ड प्रक्रिया संहिता में बताए गए हैं।
पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के नियम और अधिकार
Ø दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 ( ख ) में बताया गया है कि प्रत्येक पुलिस अधिकारी किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय अपना सही व पूरा नाम व पहचान बताएगा, जिससे उसकी आसानी से पहचान की जा सके।
Ø यदि कोई अपराध होने के पश्चात् पुलिस द्वारा गिरफ्तारी हो रही है तो उस व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले गिरफ्तारी का ज्ञापन तैयार करेगी उसके बाद ही व्यक्ति को गिरफ्तार करेगी।
Ø गिरफ्तारी का जो ज्ञापन पुलिस अधिकारी द्वारा तैयार किया जाता है उसमें गिरफ्तार होने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर भी करवाने होते हैं।
Ø ऐसा ज्ञापन कम से कम एक ऐसे साक्षी द्वारा अनुप्रभावी होना चाहिए जो उसके परिवार या उस क्षेत्र का सदस्य हो।
Ø पुलिस अधिकारी को चाहिए कि वह गिरफ्तार होने वाले व्यक्ति को यह बताए कि उसको यह अधिकार है कि उसको किसी नातेदार या मित्र जिसका भी वह नाम दे उसको उस व्यक्ति की गिरफ्तारी की सूचना दी जाए।
Ø दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 ( 1 ) में यह बताया गया है कि व्यक्ति को बिना वॉरण्ट के गिरफ्तार किए जाने पर उस व्यक्ति को पुलिस उसका अपराध व गिरफ्तारी के अन्य आधार बताए।
Ø दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 ( 2 ) में यह बताया गया है कि यदि पुलिस किसी व्यक्ति को अजमानतीय अपराध से भिन्न किसी औऱ अपराध के लिए गिरफ्तार करती है तो पुलिस अधिकारी को चाहिए कि गिरफ्तार होने वाले व्यक्ति को यह जानकारी दे कि वह जमानत पर छोड़े जाने का हकदार है और वह अपनी ओर से जमानत राशि का इन्तजाम करे।
गिरफ्तार होने वाले व्यक्ति के अधिकार व कर्तव्य
Ø दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 ( घ ) के अनुसार गिरफ्तार होने वाले व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह पूछताछ के दौरान अपने पंसदीदा अधिवक्ता से मिल सकता है परन्तु पूरी पूछताछ के दौरान नहीं।
Ø संहिता की धारा 46 ( 1 ) में यह उपबंधित है कि गिरफ्तार करते समय संबंधित अधिकारी या पुलिस अधिकारी तब तक गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को वस्तुतः न छुएगा जबतक उसने स्वयं को गिरफ्तार करने वाले व्यक्ति की अभिरक्षा में समर्पित न कर दिया हो।
Ø संहिता की धारा 50 ( 1 ) के अनुसार बिना वारण्ट के गिरफ्तारी में गिरफ्तार होने वाले व्यक्ति को गिरफ्तारी की पूर्ण विशिष्टियाँ व अन्य आधार जानने का अधिकार है।
Ø धारा 50 ( 2 ) के अनुसार यदि किसी व्यक्ति बिना वारण्ट के किसी जमानतीय अपराध के लिए पुलिस गिरफ्तार करती है तो पुलिस का यह कर्तव्य है कि वह उस व्यक्ति को बताए कि उसकी जमानत हो सकती है।
Ø धारा 51 कहती है कि पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति की तलाशी करते समय पहनने के आवश्यक वस्त्रों को छोड़कर उसके पास मिली सभी वस्तुओं को अपनी अभिरक्षा में रख सकता है और को एक रसीद दी जाती है जिसमें कब्जे का सामान दर्शित रहता है।
Ø संहिता की धारा 54 ( क ) के अनुसार गिरफ्तारी के पश्चात् व्यक्ति की शिनाख्त की जाती है कि गिरफ्तार सही या नहीं।
Ø संहिता की धारा 55 ( क ) के अनुसार अभियुक्त को अभिरक्षा में रखने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह उसके स्वास्थ्य व सुरक्षा की युक्तियुक्त देखभाल करे।
Ø संहिता की धारा 56 के अनुसार पुलिस अधिकारी द्वारा बिना वारण्ट के गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को शीघ्र ही मजिस्ट्रेट या भारसाधक के समक्ष ले जाया जाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष बिना विशेष आदेश के पुलिस की अभिरक्षा में 24 घण्टे से अधिक समय तक नहीं रखा जा सकता है।
2. प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी
संहिता की धारा 43 की उपधारा 1 के अन्तर्गत् प्राइवेट व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह किसी ऐसे व्यक्ति को जिसने उसकी उपस्थिति में कोई अजमानतीय अपराध किया है अथवा उद्घोषित अपराधी है गिरफ्तार कर सकता है अथवा करवा सकता है। ऐसे गिरफ्तार करके वह उस व्यक्ति को बिना विलंब किए पुलिस अधिकारी को सौंप देगा या नजदीकी पुलिस थाने ले जाएगा या भिजवाएगा।
संहिता की धारा 43 की उपधारा 2 के अनुसार यदि यह विश्वास हो जाता है कि गिरफ्तार व्यक्ति संहिता की धारा 41 के उपबंधों के अन्तर्गत् आता है तो पुलिस अधिकारी द्वारा उसे फिर से गिरफ्तार किया जा सकता है।
संहिता की धारा 43 उपधारा 3 के अनुसार इस प्रकार गिरफ्तार व्यक्ति अपना सही नाम, पहचान व निवास नहीं बताता है तो उसे पुलिस सही जानकारी प्राप्त करने हेतु अपनी अभिऱक्षा में रख सकती है।
3. मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी —
संहिता की धारा 44 की उपधारा 1 के द्वारा न्यायिक मजिस्ट्रेट को यह शक्ति दी गई है कि वह उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर पुलिस की अभिरक्षा में भेज सकता है जिसने उसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर उसकी उपस्थिति में कोई अपराध किया है।
धारा 44 की उपधारा 2 के अन्तर्गत् न्यायिक मजिस्ट्रेट को उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने की शक्ति प्रदान की गई है जिसके बारे में यह संदेह है कि उसने कोई अपराध किया है। परन्तु ऐसे मामले में वह उसे अभिरक्षा में भेजने की शक्ति नहीं रखता है। ऐसे संदिग्ध व्यक्ति को अभिरक्षा भेजने की शक्ति ऩ दिया आकस्मिक नहीं सोद्देश्य है।
स्त्री की गिरफ्तारी से संबंधित प्रावधान
( गिरफ्तारी के समय महिला के अधिकार )
Ø संहिता की धारा 46 ( 1 ) के अनुसार किसी महिला को गिरफ्तार करते समय जहाँ परिस्थिति विपरीत न हो वहाँ पहले उसे मौखिक रूप से सूचित किया जाएगा औऱ समर्पण न करने पर उसे किसी महिला को पुलिस अधिकारी के द्वारा ही गिरफ्तार किया जा सकता है। कोई भी पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के समय महिला को स्पर्श नहीं कर सकता है। परन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में जहाँ बहुत ही आवश्यक हो जाए पुरुष पुलिस अधिकारी द्वारा भी महिला को गिरफ्तार किया जा सकता है।
Ø संहिता की धारा 46 ( 4 ) के अनुसार कुछ विशेष परिस्थितियों के अतिरिक्त किसी भी स्त्री को सूर्यास्त के बाद और सूर्यास्त के पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। परन्तु यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए जहाँ महिला की गिरफ्तारी आवश्यक हो जाए तो इस स्थिति में महिला पुलिस लिखित रिर्पोट करके संबंधित अधिकार क्षेत्र के प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट से अनुमति लेगी व उसकी गिरफ्तारी करेगी। अपऱाध करते समय महिला को बिना किसी पूर्व अनुमति के गिरफ्तार किया जा सकता है।
Ø संहिता की धारा 51 ( 2 ) के अनुसार किसी भी महिला की तलाशी यदि आवश्यक हो जाता है तो उसकी तलाशी किसी महिला पुलिस अधिकारी द्वारा पूर्ण शिष्टता व शालीनता का विशेष ध्यान रखते हुए ली जानी चाहिए।
Ø संहिता की धारा 53 ( 2 ) के अनुसार किसी भी स्त्री का शारीरिक परीक्षण केवल किसी रजिस्टर्ड महिला चिकित्सा व्यवसायी के द्वारा या उसके पर्यवेक्षण में ही किया जा सकता है।
Ø संहिता की धारा 160 के अनुसार किसी महिला को पूछताछ के लिए पुलिस थाने अथवा अन्य किसी औऱ स्थान पर बुलाया नहीं जा सकता है।
Ø गिरफ्तारी के बाद महिला को महिलाओं के कमरे में ही रखा जाना चाहिए।
Ø पुलिस द्वारा मारपीट या दुर्व्यहार करने पर महिला को यह अधिकार है कि वह डॉक्टरी जाँच की माँग कर सकती है।
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