Injuria sine damno (बिना हानि के क्षति)


बिना हानि के क्षति (injuria sine damno

बिना हानि के क्षति का तात्पर्य है कि हालांकि वादी को क्षति (विधिक क्षति) हुई है, अर्थात् उसमें निहित किसी विधिक अधिकार का अतिलंघन हुआ है किन्तु उसको चाहे कोई हानि कारित न हुई हो, वह फिर भी प्रतिवादी के विरुद्ध वाद ला सकता है।

Injuria sine damno एक लैटिन सूक्ति है, जिसका सामान्य अर्थ है " बिना क्षति के हानि ", यह सूक्ति 2 लैटिन शब्दों injuria और damno से मिलकर बनी है जिसमें --

injuria का अर्थ है – किसी अधिकार का उल्लंघन, तथा

damno का अर्थ है – वास्तविक क्षति अथवा नुकसान


इस सूत्र का अर्थ है कि यदि किसी व्यक्ति के विधिक अधिकार का उल्लंघन होता है तो वादी को वाद दायर करने का अधिकार होगा चाहे उस अधिकार के उल्लंघन से उसे कोई भी वास्तविक हानि या क्षति न हुई हो। अतः इस सूत्र के अनुसार अपकृत्य के लिए मात्र यह सिद्ध करना ही आवश्यक है कि विधिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है तथा वास्तविक हानि या नुकसानी को सिद्ध करना आवश्यक नही है | 

वाद - ऐशबी बनाम ह्वाइट  (1703)

  उपरोक्त वाद में ही ‘बिना हानि के क्षति ’ (Injuria sine damno)   सूत्र सर्वप्रथम आस्तित्व में आया | 

तथ्य-  इस वाद में प्रतिवादी एक चुनाव अधिकारी था | उसने भूलवश् वादी का मतपत्र लेना अस्वीकार कर दिया जबकि  वादी का नाम संसदीय निर्वाचन के मतदाता सूची में शामिल था | जिस प्रत्याशी के पक्ष में वादी का मतपत्र था वह भारी मतों से चुनाव जीत गया | इस प्रकार उक्त वादी को उसका मतपत्र अस्वीकार हो जाने से किसी भी प्रकार की कोई वास्तविक क्षति नही हुई । परन्तु वादी का नाम संसदीय निर्वाचन सूची में होने के कारण वादी को यह अधिकार था कि वह मतदान कर सकता है परन्तु उसका मतपत्र अस्वीकार कर प्रतिवादी द्वारा उसके विधिक अधिकार का उल्लंघन किया गया। वादी ने क्षतिपूर्ति हेतु न्यायालय में वाद दायर किया। यह निर्णीत किया गया कि वादी का दावा अनुयोज्य है तथा प्रतिवादी को उत्तरदायी ठहराया गया |

मुख्य न्यायाधीश होल्ट महोदय ने कहा कि – “यदि वादी का कोई अधिकार है तो उसे लागू करने या बनाये रखने के लिए साधन भी होना चाहिए तथा यदि उसे इसके उपयोग में क्षति पहुँचती है तो उसके लिए कोई उपचार होना चाहिए | प्रत्येक क्षति हानि उत्पन्न करती है | चाहे वादी पर उसका सीधा प्रभाव पड़ता हो अन्यथा नहीं |वादी को  उसके विधिक अधिकार के उल्लंघन होने पर एक पौंड की नाममात्र की हर्जाने की राशि उपचार स्वरूप  दिलाई गयी |

वाद - मारजेटी बनाम विलियम्स

  इस मामले में वादी का काफी धन बैंक में जमा था फिर भी प्रतिवादी ने उसके चेक को भुगतान करने से मना कर दिया | अपकृत्य में बैंक के विरुद्ध दावा स्वीकार किया गया | यद्यपि भुगतान न होने से वादी को कोई हानि नही हुई थी |

वाद - म्युनिसिपल बोर्ड ऑफ़ आगरा बनाम अशर्फीलाल 

 तथ्य - प्रस्तुत वाद में न्यायालय द्वारा कहा गया कि यदि कोई व्यक्ति इस बात का अधिकारी है कि निर्वाचन सूची में उसका नाम हो तथा दोषपूर्ण रूप से उसका नाम ऐसे निर्वाचन सूची में नही रखा जाता है तथा इस प्रकार वह मतदान करने के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है तो उसे वाद दाखिल कर क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होगा |

वाद - भीम सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ जम्मू और कश्मीर

तथ्य - प्रस्तुत वाद में पुलिस ने भीम सिंह नामक विधानसभा के सदस्य को पकड़ लिया और अकारण ही कुछ दिन बिना किसी उचित कारण के बंदी रखा गया | उच्चतम न्यायालय द्वारा उसके लिए राज्य को दायी ठहराया गया |

अतः इससे यह सिद्ध होता है कि हर बार क्षति केवल धन के रूप में ही नही होती है | किसी व्यक्ति के अधिकार के उपभोग में बाधा डालना भी स्वयं में एक हानि है |



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