Restrictions of transferable rights of bhoomidhar
भूमिधरों द्वारा भूमि के अन्तरण पर प्रतिबंध
सामान्य तौर पर कोई भी व्यक्ति अपनी निजी जमीन का अन्तरण अर्थात उसे बेच सकता है, बंधक या पट्टे पर भी दे सकता है परन्तु ऐसे अन्तरण पर सरकार ने कुछ प्रतिबंध लगाए हैं।
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा- 88 में यह प्रतिबंध किया गया है कि संक्रमणीय अधिकार वाले भूमिधर का हित संक्रमणीय होता है। इसका अर्थ यह है कि कोई भी व्यक्ति दान, पट्टा, विक्रय या अन्य कोई अन्तरण कर सकता है, परन्तु भूमिधर का अन्तरण का अधिकार आत्यन्तिक नहीं है। ऐसा अन्तरण संहिता के उपबन्धों के अधीन किया जाना चाहिए।
भूमिधर(जमीन के मालिक) का अपने हित का अन्तरण निम्नलिखित प्रतिबंधों के अधीन होता है—
1. साढ़े बारह एकड़ का प्रतिबंध—धारा-89(2)
2. विदेशी नागरिक द्वारा भूमि के अर्जन पर रोक—धारा-90
3. अनुसूचित जाति के लोगों द्वारा अन्तरण पर प्रतिबंध—धारा-98
4. अनुसूचित जनजाति के लोगों द्वारा अन्तरण पर प्रतिबंध—धारा-99
5. पट्टे द्वारा अन्तरण पर प्रतिबंध—धारा-94
6. बंधक द्वारा अन्तरण पर प्रतिबंध—धारा-91
1. साढ़े बारह एकड़ का प्रतिबंध—धारा-89(2 ) — इस धारा के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी संक्रमणीय अधिकार भूमिधर से क्रय या दान द्वारा कोई भूमि प्राप्त करने का अधिकार नहीं रखेगा, जहाँ अन्तरिती ऐसे अर्जन के परिणामस्वरूप अंतिरिती भूमि का हकदार बन जाता है जो कि ऐसे अन्तिरिती द्वारा धारित भूमि, यदि कोई हो, को मिलाकर उ0 प्र0 में 5.0586 हेक्टेयर (12.50 एकड़) से अधिक हो जाती है। अर्थात् यह प्रावधान सहज रूप से यह स्पष्ट करता है कि क्रेता और दानग्रहीता के पास पहले की भूमि और ली जाने वाली भूमि कुल मिलाकर उ0 प्र0 में उसके और उसके परिवार के पास 12.50 एकड़ से अधिक भूमि नहीं होनी चाहिए।
साढ़े बारह एकड़ की सीमा का अपवाद—धारा-89(3) — संहिता की धारा- 89 की उपधारा-3, उपधारा-2 के अपवाद का उपबंध करती है, जिसके अनुसार, यदि अर्जन पूर्त अथवा औद्योगिक प्रयोजन हेतु हो और किसी पंजीकृत सोसाइटी, किसी कंपनी, शिक्षण संस्थान या अन्य कोई निगम अथवा किसी पूर्त संस्था के पक्ष में हो और यदि उसकी राय हो कि ऐसा अर्जन लोकहित में होगा तो इस स्थिति में राज्य सरकार सामान्य या विशिष्ट आदेश द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक भूमि अर्जित करने के लिए प्राधिकृत कर सकती है।
सम्बन्धित वाद - ‘जगदीश चन्द्र’ बनाम ‘ब्रिज मोहन’, (SC-1318)
इस वाद में कहा गया कि- “यह स्पष्ट है कि इस धारा के प्रावधान के लागू होने से पहले यह तथ्य अवश्य सिद्ध होना चाहिए कि जिसे सम्पत्ति अन्तरित की जाय, उसके पास यह भूमि मिलाकर उ0 प्र0 राज्य में 12.50 एकड़ से अधिक अवश्य हो जाय और यह खतौनी के उद्धरण को पेश कर ही सिद्ध किया जा सकता है। चूँकि अपीलार्थी ने यह साबित करने के लिए कि प्रत्यर्थी इस विक्रय-पत्र के परिणामस्वरूप 12.50 एकड़ से अधिक भूमि का स्वामी हो जाएगा, खतौनी का उद्धरण पेश नहीं किया, अतः यह नहीं कहा जा सकता कि इस मामले में उ0 प्र0 जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था-1950 अधिनियम की धारा 154 का उल्लंघन हुआ है।
“उपरोक्त निरसित अधिनियम की धारा-154 के प्रावधान संहिता की धारा-89(2) में किए गए हैं।”
2. विदेशी नागरिक द्वारा भूमि के अर्जन पर रोक—धारा-90 — इस संहिता या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में दी गयी किसी बात के होते हुए भी भारतीय नागरिक के भिन्न कोई विदेशी नागरिक (जो भारत का नागरिक न हो) राज्य की लिखित पूर्व अनुमति के बिना न कोई भूमि खरीद सकता है और न तो दान में ले सकता है।
“इस धारा में प्रयुक्त शब्द ‘भारतीय नागरिक’ में कोई कंपनी या संगम या व्यक्तियों का निकाय, चाहे निगमित हों या नहीं और जो पूर्णतया या मौलिक रूप से भारतीय नागरिकों के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन है, सम्मिलित होगी।”
3. अनुसूचित जाति के भूमिधरों द्वारा अन्तरण पर प्रतिबंध—धारा-98 इस धारा में दो खण्ड हैं—
1. इस अध्याय के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, अनुसूचित जाति का कोई भी भूमिधर, कलेक्टर द्वारा बिना लिखित पूर्वाज्ञा के, अपनी किसी भी भूमि को अनुसूचित जाति के व्यक्ति के सिवाय अन्य किसी व्यक्ति को विक्रय, दान, पट्टे अथवा बंधक द्वारा अन्तरित नहीं कर सकता है।
परन्तु कलेक्टर द्वारा ऐसी आज्ञा तभी दी जा सकेगी जब—
a) अनुसूचित जाति के भूमिधर के पास धारा 108 की उपधारा (2) के खण्ड (a) या धारा 110 के खण्ड (a) जैसी भी स्थिति हो, में विर्निदिष्ट कोई जीवित उत्तराधिकारी न हो, या
b) अनुसूचित जाति के भूमिधर जिस जिले में अन्तरण के लिए प्रस्तावित भूमि स्थित है, उससे इतर किसी अन्य राज्य में किसी नौकरी या अन्य व्यापार, व्यवसाय, वृत्ति या कारोबार के निमित्त बस गया है या सामान्य तौर पर रह रहा है, या
c) कलेक्टर को यह लगे कि विहित कारणों से भूमि के अन्तरण की अनुज्ञा देना आवश्यक है।
2. इस धारा के अधीन अन्तरण की अनुमति प्रदान करने के प्रयोजनार्थ कलेक्टर द्वारा ऐसी जाँच की जा सकती है जैसी कि विहित की जाय।
इस प्रकार यदि अनुसूचित भूमिधर द्वारा भूमि जब किसी गैर-अनुसूचित जाति के व्यक्ति को दी जाती है, तो वहाँ कलेक्टर की अनुमति अपेक्षित होती है, परन्तु निम्न स्थितियों में कलेक्टर की पूर्व अनुमति आवश्यक नहीं है —
i. जहाँ अन्तिरिती अनुसूचित जाति का व्यक्ति है, अर्थात् एक अनुसूचित जाति का व्यक्ति अपनी जोत को किसी अनुसूचित जाति के बिना कलेक्टर की अनुमति के अन्तरित कर सकता है।
ii. यदि अन्तरित की जाना वाली भूमि कृषि भूमि नहीं है, अर्थात् धारा 80 के अन्तर्गत् घोषित भूमि या शहरी भूमि है।
4. अनुसूचित जनजाति के भूमिधरों द्वारा अन्तरण पर प्रतिबंध—धारा-99 — अनुसूचित आदिम जाति के भूमिधरों के जोत के अन्तरण के संबंध में संहिता की धारा 99 में प्रावधान किया गया है, धारा-99 के अनुसार, “इस अध्याय के उपबंधों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना अनुसूचित जनजाति के किसी भूमिधर को विक्रय, दान, पट्टे या बंधक के द्वारा किसी भूमि को गैर-अनुसूचित जाति के व्यक्ति को अन्तरण करने का अधिकार नहीं है।
यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात यह है कि अनुसूचित आदिम जाति की भूमि कलेक्टर की पूर्वाज्ञा से भी किसी गैर-अनुसूचित जाति के व्यक्ति को अन्तरित नहीं की जा सकती है। इन्हें भूमि के ऐसे अन्तरण से प्रतिषेध करने का उद्देश्य यह है अभिनिश्चित करना है कि अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों द्वारा धारित संपूर्ण भूमि की कुल मात्रा कम न हो जाए।
5. पट्टे द्वारा अन्तरण पर प्रतिबंध—धारा-94 — संहिता की धारा 94 में कहा गया है कि, कोई भूमिधर या आसामी अपनी जोत या इसके भाग को पट्टे पर नहीं देगा, सिवाय —
a) धारा 95 या 96 में बताई गई स्थितियों में, यीव
b) कृषि में प्रशिक्षण देने वाली मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्था को।
धारा- 95 में निःशक्त व्यक्ति द्वारा भूमि को पट्टे पर देने की बात कही गयी है तथा धारा- 96 में निःशक्त सहअंशधारियों द्वारा भूमि को पट्टे पर दिए जाने के संबंध में उपबन्ध किया गया है।
धारा के उल्लंघन में पट्टे का प्रभाव— धारा 103 में इसके लिए प्रावधान किया गया है, धारा 103 में कहा गया है कि, जब कोई भूमिधर अपने किसी जोत या उसके किसी भाग को धारा 94, 95, 96 या धारा 97 के उल्लंघन में पट्टे पर दिया है, वहाँ पट्टेदार बन जाएगा।
सम्बन्धित वाद—‘शीतल प्रसाद’ बनाम ‘मोहम्मद सब्बीर’-1989 रे0डि0-127 (उच्च न्यायालय)
प्रस्तुत वाद में अपीलार्थी वादग्रस्त भूमि के भूमिधर थे। उस भूमि के एक
भाग को जो कि सड़क की ओर था , शीतला प्रसाद ने 30 रूपये मासिक
आय पर मोहम्मद सब्बीर को पट्टे पर दे दिया। प्रतिवादी ने कुछ महीनों बाद किराया देना बंद कर दिया तो अपीलार्थी ने प्रतिवादी को नोटिस भेजी कि वह बकाया किराया अदा कर दे और भूमि खाली कर दे। नोटिस मिलने के बावजूद भी जब प्रतिवादी ने न तो किराया अदा किया और न ही भूमि खाली की तो शीतल प्रसाद ने मोहम्मद सब्बीर के ऊपर बकाया किराए की राशि और बेदखली का वाद 1974 ई0 में मुन्सिफ न्यायालय में दाखिल किया। प्रतिवादी ने तर्क दिया कि शीतल प्रसाद अक्षम व्यक्ति नहीं थे, अतएव वादग्रस्त भूमि को किराये पर उठाते ही उनका स्वामित्व समाप्त हो गया और प्रतिवादी सीरदार (अब भूमिधर) हो गया। मुन्सिफ न्यायालय ने प्रतिवादि के तर्क को स्वीकार कर वाद खारिज कर दिया। जिला जज ने भी मुन्सिफ न्यायालय के निर्णय को बहाल रखा तब शीतल प्रसाद ने उच्च न्यायालय में अपील की। उच्च न्यायालय ने निर्णीत किया कि चूँकि अपीलार्थी ने तत्समय प्रभावी अधिनियम, उ0 प्र0 जमीदारी- विनाश एवं भूमि-व्यवस्था अधिनियम-1950 की धारा 157 के प्रावधान के उल्लंघन में भूमि को लगान पर उठाया है अतएव पट्टेदार सीरदार (अब भूमिधर) हो गया और अपीलार्थी का स्वत्व समाप्त हो गया।
“अब इस धारा- 157 के प्रावधान संहिता की धारा-95 में किये गये हैं, यह संहिता तत्समय प्रभाव में है।”
6. बंधक द्वारा अन्तरण पर प्रतिबंध — धारा- 91 में यह प्रावधान किया गया है कि, किसी भूमिधर को किसी जोत या उसके किसी भाग के ऐसे अन्तरण का अधिकार नहीं है जहाँ बंधक सम्पत्ति का कब्जा अग्रिम दी गई या दी जाने वाली अथवा उस पर ब्याज हेतु बंधक की धनराशि के लिए प्रतिभूति के रूप में बंधक गृहीता को अन्तरित किया गया हो या अन्तरित किये जाने हेतु करार किया गया हो।
धारा-98 एवं 99 में अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा बंधक करने के संबंध में प्रतिबंध का उल्लेख किया गया है।
उक्त प्रावधान से यह स्पष्ट हो जाता है कि कोई भी भूमिधर अपनी जोत अथवा उसके किसी भाग को बंधक नहीं रख सकता है, जहाँ—
i. बंधक संपत्ति के कब्जे के अन्तरण द्वारा, या
ii. बंधक संपत्ति के कब्जे के साथ
कर्ज की प्रतिभूति दिए जाने का करार है।
अर्थात भूमिधर द्वारा बंधक सम्पत्ति के कब्जे के साथ बंधक करने के प्रतिबंध के बावजूद, कुछ निम्नलिखित प्रावधान उसे अपनी जोत या उसके किसी भाग के बंधक के लिए अनुज्ञेय बनाते हैं।
1. संक्रमणीय अधिकार वाले भूमिधर द्वारा बंधक— धारा-91 के प्रावधानों के अधीन भूमिधर कब्जे सहित बंधक नहीं कर सकता परन्तु संक्रमणीय अधिकार वाले भूमिधर पर बिना कब्जे के जोत या उसके किसी भाग के बंधक करने पर रोक नहीं लगाती है, अतः वह बिना कब्जे के अपनी जोत या उसके किसी भाग को बंधक कर सकता है।
2. असंक्रमणीय अधिकार वाले भूमिधर द्वारा बंधक— धारा-92— इस संस्था के उपबन्धों के अधीन किसी जोत या उसके किसी भाग में असंक्रमणीय अधिकार वाले किसी भूमिधऱ का हित,
a) राज्य सरकार या किसी बैंक, सहकारी समिति अथवा यू0 पी0 स्टेट एग्रो इंड्रस्ट्रियल कारपोरेशन लिमिटेड या ऐसी सरकार के स्वामित्वाधीन या नियन्त्रणाधीन किसी अन्य वित्तीय संस्था से लिए गए या लिए जाने वाले ऋण के प्रतिभूति के रूप में बिना कब्जा के बंधक द्वारा अन्तरित किया जा सकता है।
b) खण्ड (a) के निर्दिष्ट मामले के संबंध में किसी न्यायालय की डिक्री निष्पादन में या अध्याय 12 के अधीन भू-राजस्व संग्रह की कार्यवाही में विक्रय किया जा सकता है।
3. अनुसूचित जाति एवं जनजाति वाले सदस्यों द्वारा बंधक—धारा-100— अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का कोई भी भूमिधर या आसामी राज्य सरकार से या धारा-92(a) के निर्दिष्ट किसी संस्था से लिया गया या लिए जाने वाले किसी ऋण के लिए प्रतिभूति के रूप में बिना कब्जे के बंधक द्वारा किसी जोत या उसके किसी भाग में अपने हित का अन्तरण कर सकता है।
i. अनुसूचित जाति के संबंध में— अनुसूचित जाति के भूमिधर या आसामी अपनी जोत या उसके किसी भाग के हित को बिना कब्जे के बंधक किसी अन्य अनुसूचित जाति के व्यक्ति को कलेक्टर की पूर्वाज्ञा के बिना कर सकता है, परन्तु सामान्य वर्ग के किसी व्यक्ति को बंधक करने के लिए कलेक्टर की पूर्व अनुमति आवश्यक है।
ii. अनुसूचित जनजाति के संबंध में— अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति किसी भी दशा में किसी गैर-अनुसूचित जनजाति के सदस्य को अपनी भूमि बंधक नहीं कर सकेंगे।
कब्जे के साथ बंधक का परिणाम—धारा-93 — संहिता की धारा-93 के अनुसार, यदि कोई भूमिधर ऋण के रूप में या ऐसे ऋण पर ब्याज के बदले में अग्रिम ली गयी किसी धनराशि को प्राप्त करने के प्रयोजन हेतु किसी जोत या उसके किसी भाग का कब्जा अन्तरित करता है, तो ऐसा संव्यवहार सदैव और इस संस्था के प्रयोजनों के लिए अन्तरिती को विक्रय माना जायेगा और विक्रय पर धारा 89 के प्रतिबंध लागू होंगे।
अर्थात् ऐसे अन्तरिती की कुल जोत की धारिता 5.0586 हेक्टेयर से अधिक नहीं होगी और अधिक होने पर सीमा से अधिक संव्यवहार शून्य होगा और भूमि सरकार में बिना किसी विलम्ब के निहित हो जाएगी।
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