रैगिंग से कैसे बचें? रैगिंग विरोधी उपाय

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आज के इस लेख में हम जानेंगे कि रैगिंग क्या होती है और इससे बचने के लिए कौन-कौन से कानून हैं। यदि आपके साथ भी रैगिंग होती है तो आप उससे बचने के लिए क्या-क्या कानूनी प्रक्रिया अपना सकते हैं? रैगिंग क्या है?   रैगिंग की शुरुआत इसलिए हुई थी ताकि पुराने छात्र आने वाले नए छात्रों को सामान्य और दायरे में रहकर उनसे घुल मिल सकें और उन्हें अच्छा महसूस करा सकें। न कि किसी की भावनाओं को आहत करें। पर समय के साथ रैगिंग शब्द का अर्थ भी बदलने लगा जब पुराने छात्र ने छात्रों को अकारण रैगिंग के नाम पर गलत तरीके और व्यवहार से परेशान करना शुरू कर दिया।  तो अब हम कह सकते हैं कि - Anti-ragging affidivit format के लिए इस दिए गए लिंक पर क्लिक करें -- https://vidhikinfo.blogspot.com/2024/03/affidavit-for-anti-ragging-format-in.html किसी शिक्षण संस्थान, छात्रावास विश्वविद्यालय या किसी विद्यालय आदि में छात्रों के द्वारा ही किसी अन्य छात्र को प्रताड़ित करना या ऐसे किसी काम को करने के लिए जबरन मजबूर करना जो की वह किसी सामान्य स्थिति में नहीं करेगा, इसे ही रैगिंग कहते हैं। रैगिंग शारीरिक मानसिक या मौखिक रू...

उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र (Succession Certificate)

 उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र 

(Succession Certificate)

उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र (Succession Certificate) एक तरह का कानूनी दस्तावेज है जिसे न्यायालय किसी मृत व्यक्ति की संपत्ति, ऋण या देनदारी को उसके उत्तराधिकारी के सुपुर्द करने के लिए जारी करता है। यह प्रमाण-पत्र इस बात की पुष्टि करता है कि संबंधित व्यक्ति वास्तव में मृतक का विधिक उत्तराधिकारी है।


   यहां हम साधारण शब्दों में जानेंगेे कि क्या होता है     उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र?


जब कोई व्यक्ति अपनी चल संपत्ति जैसे- बैंक बैलेंस, बीमा राशि, शेयर आदि बिना किसी को वसीयत (Will) किए मर जाता है, तो उसके विधिक उत्तराधिकारी को यह संपत्ति प्राप्त करने के लिए न्यायालय से उत्तराधिकार प्रमाण पत्र (Succession Certificate) बनवाना होता है।


न्यायालय उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र कैसे जारी करता है और क्या होती है उसकी कानूनी प्रक्रिया 


1. याची द्वारा न्यायालय में याचिका दाखिल करना (Petition):

सबसे पहले मृत व्यक्ति के उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाले व्यक्ति को उत्तराधिकार अधिनियम 2005 की धारा - 372 के अंतर्गत दीवानी न्यायालय (प्रभारी जिला न्यायालय) में एक याचिका दाखिल करनी होती है।


2. याचिका में कौन कौन सा विवरण देना होता है:

याचिका में निम्नलिखित विवरण देना आवश्यक होता है:

  • मृत व्यक्ति का नाम व पता, मृत्यु का दिनांक और मृत्यु प्रमाण-पत्र (Death Certificate)

  • याची का मृतक से क्या संबंध है इसकी पूरी जानकारी याचिका में देनी होती है।

  • मृत व्यक्ति के सभी उत्तराधिकारियों की पूर्ण जानकारी भी याचिका में देना अनिवार्य होता है।

  • संपत्ति की सूची (जैसे बैंक खाता संख्या, राशि आदि) की भी पूर्ण सही-सही जानकारी देनी होती है।


3. अधिसूचना (Notice):

याचिका दाखिल किए जाने के पश्चात न्यायालय द्वारा एक सार्वजनिक अधिसूचना समाचार पत्र में प्रकाशित की जाती है, जिसमें संबंधित व्यक्ति या अन्य कोई व्यक्ति जिसे आपत्ति हो वह सूचना प्रकाशित होने की तिथि से 45 दिनों के भीतर जवाब दे सकता है।


4. आपत्तियों की सुनवाई:

यदि सूचना जारी करने के पश्चात किसी व्यक्ति की ओर से कोई आपत्ति आती है तो न्यायालय उसपर सुनवाई करता है, अन्यथा याचिका पर सीधे निर्णय लेता है।


5. न्यायालय द्वारा प्रमाण पत्र जारी किया जाना:

यदि न्यायालय साक्ष्यों और गवाहों से संतुष्ट हो जाता है, तो वह याची(याचिका दायर करने वाला व्यक्ति) के संबंध में  उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी कर देता है। यह प्रमाण पत्र न्यायालय द्वारा संपत्ति के आधार पर की गई कोर्ट फीस की राशि के स्टांप पर जारी किया जाता है।जो सामान्यतया संपत्ति को राशि की ३% तक हो सकती है।


 याची को प्रमाण पत्र मिलने के बाद

उत्तराधिकार प्रमाण पत्र मिलने के बाद याची बैंक, बीमा कंपनी, शेयर कंपनी आदि जहां जरूरत हो, में जाकर मृतक की संपत्ति अपने नाम करवा सकता है।


  कब ज़रूरी होता है उत्तराधिकार प्रमाण पत्र?

जब मृतक व्यक्ति के नाम पर बैंक खाते, फिक्स्ड डिपॉजिट, इंश्योरेंस, पीएफ, म्यूचुअल फंड या और किसी भी प्रकार की चल संपत्ति हो और उसने उनकी वसीयत किसी के नाम पर नहीं की हो और इस संबंधित सम्पत्ति को अपने नाम पर करवाने के लिए विधिक उत्तराधिकारी को कानूनी मान्यता चाहिए हो तो इस प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है।


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