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Showing posts from September, 2020

मौलिक अधिकार (fundamental rights), "right to equality"(समानता का अधिकार)

  मौलिक  अधिकार Fundamental Rights मौलिक अधिकार से तात्पर्य उन अधिकारों से है जो प्रत्येक व्यक्ति के भौतिक, सामाजिक, नैतिक व आध्यात्मिक विकास हेतु अत्यन्त् आवश्यक हैं। ये अधिकार व्यक्ति के जीवन में मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा देश के प्रत्येक नागरिक को प्रदान किये गये हैं। ये अधिकार प्रत्येक नागरिक को जन्म से प्राप्त होते हैं। इन अधिकारों के संबंध में राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। इन अधिकारों को अमेरिका के संविधान से लिया गया है। मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के भाग - 3 में किया गया है । मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार लिए गए थे परन्तु 44 वें संविधान संशोधन के द्वारा “ संपत्ति के अधिकार ” को मौलिक अधिकारों की सूची से हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद - 300 (a)   के अन्तर्गत् कानूनी अधिकार के रूप में शामिल किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 35 तक   इन मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है। भीमराव अम्बेडर जी ने भी कहा है कि -    “ मौलिक अधिकार उल्लिखित करने का एक तो उद्देश्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति इन अधिकार...

Foreign Court & Foriegn Judgement

  विदेशी न्यायालय व विदेशी निर्णय Foreign Court   & Foreign Judgement   विदेशी न्यायालय Foreign Court   ऐसे न्यायालय जो भारतीय सीमाक्षेत्र के बाहर स्थित हैं और केन्द्र सरकार द्वारा संचालित नहीं होते और न ही केन्द्र सरकार के आदेश से स्थापित किए गए हैँ विदेशी न्यायालय  कहलाते हैं। इन न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णय विदेशी निर्णय कहे जाते हैं। विदेशी न्यायालय को सिविल प्रक्रिया संहिता-1908 की धारा-2(5) में परिभाषित किया गया है।  सिविल प्रक्रिया संहिता CPC     की  धारा-2(5) के अनुसार- विदेशी न्यायालय से अभिप्राय ऐसे न्यायालय से है जो भारत के बाहर स्थित है और केन्द्रीय सरकार के प्राधिकार से स्थापित नहीं किया गया है या चालू नहीं रखा गया है।           इस परिभाषा के अनुसार निम्नलिखित दो शर्तों के पूरा होने पर ही कोई भी न्यायालय विदेशी न्यायालय की श्रेणी में आता ह 1.  ऐसा न्यायालय भारतीय सीमाक्षेत्र के बाहर स्थित होना चाहिए। 2.  ऐसा न्यायालय न तो केन्द्र सरकार के प्राधिकार से स्थापित और न...