Judgement (निर्णय) से आप क्या समझते हैं?
निर्णय़(Judgement)
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा-2(9) के अनुसार— “निर्णय से अभिप्राय एक आज्ञप्ति या आदेश के आधारों पर न्यायाधीशों द्वारा किये गए कथन से है।”
एक न्यायाधीश द्वारा इस आशय की घोषणा कि वह क्या निर्णय देने वाला है अथवा मामले का अन्तिम निष्कर्ष क्या निकलने वाला है, तब तक ‘निर्णय’ की परिभाषा में नहीं आता जब तक कि उसे प्ररूपी आकार में स्फुटिक(Crystallized) नहीं कर दिया जाता और उसे खुले न्यायालय में सुना नहीं दिया जाता।
निर्णय कब सुनाया जाता है— वाद की सुनवाई समाप्त होने के बाद निर्णय खुले न्यायालय में या तो तुरन्त या यथाशीघ्र भविष्य में किसी दिन सुनाया जाता है। निर्णय यदि भविष्य में किसी दिन सुनाया जाना है तो इस प्रयोजन हेतु न्यायालय एक दिन निश्चित करता है, जिसकी विधिवत् सूचना पक्षकारों या उनके अभिवक्ताओं को दी जाती है। ऐसे निर्णय न्यायालय द्वारा सामान्यतः 30 दिनों के भीतर सुना दिये जाते हैं, किन्तु किन्हीं कारणों से यदि यह सम्भव न हो तो ऐसे कारणों को अभिलिखित किया जायेगा। परंतु यह अवधि 60 दिनों से अधिक नहीं होगी।(आदेश 20, नियम 1)
“कम न्यायालय शुल्क (deficit court-fee) का भुगतान कर देने पर आदेश पारित करने का निर्देश तथा लिखित कथन संस्थित करने हेतु समय बढ़ाने वाला कोई आदेश निर्णय नहीं होगा।”
“इसी तरह अपील अथवा पुनरीक्षण की संक्षिप्त खारिजी (Summary dismissial) का आदेश निर्णय नहीं आदेश होता है।”
निर्णय हस्ताक्षरित व दिनांकित किया जाना-(आदेश 20.नियम 3)-निर्णय खुले न्यायालय में सुनाये जाने के समय ही न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षरित व दिनांकित किया जायेगा। एक बार दिनांकित किए जाने के पश्चात् धारा-152 अथवा पुनर्विलोकन (धारा-114) में उपबन्धित प्रावधानों के अन्यथा न तो बदला जायेगा न ही उसमें कोई बात जोड़ी जायेगी।
निर्णय की अन्तर्वस्तुएँ— लघुवाद न्यायालय के निर्णय के अतिरिक्त प्रत्येक निर्णय में निम्न बातों का होना आवश्यक है—
i. मामले का संक्षिप्त विवरण
ii. अवधारण के लिए प्रश्न अर्थात् विवाद्यक(issues)
iii. उन विवाद्यकों पर निर्णय
iv. ऐसे निर्णय का कारण व आधार
निर्णय की प्रति उपलब्ध कराना— जहाँ निर्णय लिखित रूप में तैयार हो चुका है तो यदि व्यवहार्य हो, तो निर्णय सुनाये जाने के तुरंत बाद पक्षकारों को उसकी प्रति उपलब्ध करायी जायेगी, यदि-
i. पक्षकार उसके लिए आवेदन करते हैं।
ii. इसके लिए उच्च न्यायालय द्वारा बनाये गये नियमों के अनुसार निर्धारित शुल्क जमा करा दिया जाये। (आदेश 20, नियम 6-B)
निर्णीत-ऋणी—धारा-2(10) —“निर्णीत-ऋणी से अभिप्राय ऐसे किसी व्यक्ति से है जिसके खिलाफ कोई आज्ञप्ति पारित की गई हो या निष्पादन-योग्य कोई आदेश दिया गया हो।” इसके अन्तर्गत् वैध प्रतिनिधि सम्मिलित नहीं हैं।
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